अमृत योग - ज्योतिषशास्त्र का एक विशेष योग ।
ज्योतिष में वर्णित आनंद आदि 28 योगों में 21वाँ योग अमृत योग है।
मंगलवार में भद्रा तिथि द्वितीया, सप्तमी व द्वादशी (2,7,12) रहने पर,
गुरूवार में जया तिथि तृतीया, अष्टमी व त्रयोदशी (3,8,13) रहने पर,
रवि / सोमवार में पूर्णा तिथि पंचमी, दशमी और पूर्णिमा (5,10,15) रहने पर,
बुध या शनिवार में नंदा तिथि प्रतिपदा, षष्ठी व एकादशी (1,6,11) रहने पर ‘अमृतयोग’ बनते हैं । ये शुभ होते हैं।
निम्नलिखित स्थितियों में अमृत योग माना जाता है:
(1) रविवार उत्तराषाढ़ नक्षत्र,
(2) सोमवार शतभिषा नक्षत्र,
(3) भौमवार अश्विनी नक्षत्र,
(4) बुधवार मृगशिरा नक्षत्र,
(5) गुरुवार अश्लेषा नक्षत्र,
(6) शुक्रवार हस्त नक्षत्र तथा
(7) शनिवार अनुराधा नक्षत्र।
यह योग अपने नाम के अनुसार अमृतत्व फल देने वाला है अत: इस योग में यात्रा आदि शुभ कार्य श्रेष्ठ माने जाते हैं।
अमृत सिद्धि योग
रविवार व हस्त नक्षत्र,
सोमवार में मृगशिरा,
मंगल में अश्विनी,
बुधवार में अनुराधा,
गुरूवार में पुष्य,
शुक्रवार में रेवती तथा
शनिवार में रोहिणी नक्षत्र रहने पर ‘अमृत सिद्धि’ योग बनते हैं।
सामान्य व्यवहार में कदाचित् इन्हें वार व नक्षत्रों के सम्मिलित उच्चारण से भी व्यवहृत किया जाता है।
जैसे गुरूवार और पुष्य नक्षत्र के योग को ‘गुरू-पुष्य योग’ इसी प्रकार हस्तादित्य, भौमाश्विनी योग आदि भी कहा जाता है।
पुनश्च गुरूपुष्य में विवाह, भौमाश्विनी में गृहप्रवेश व शनिवार रोहिणी में यात्रा कदापि नहीं करनी चाहिये।
अत्यन्त आकस्मिकता व अपरिहार्यता की स्थिती में ही विवाहादि में इनका प्रयोग करें।
अमृत सिद्धि योग उत्तम योग हैं जिनमे किये जाने वाले कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। परन्तु इस दिन यदि दुष्ट तिथि पड़ जाए तो यह योग नष्ट होकर विष योग बन जाता है जिसे त्रितयत कहते हैं।
यह योग इस प्रकार बनते हैं –.
1. रविवार को हस्त नक्षत्र हो तो अमृत सिद्धि योग परन्तु पंचमी तिथि पड़ जाए तो विष योग।
2. सोमवार को मृगशिरा नक्षत्र हो तो अमृत सिद्धि योग परन्तु षष्टी तिथि पड़ जाए तो विष योग।
3. मंगलवार को अश्विनी नक्षत्र हो तो अमृत सिद्धि योग परन्तु सप्तमी तिथि पड़ जाए तो विष योग।
4. बुधवार को अनुराधा नक्षत्र हो तो अमृत सिद्धि योग परन्तु अष्टमी तिथि पड़ जाए तो विष योग।
5. गुरूवार को पुष्य नक्षत्र हो तो अमृत सिद्धि योग परन्तु नवमी तिथि पड़ जाए तो विष योग।
6. शुक्रवार को रेवती नक्षत्र हो तो अमृत सिद्धि योग परन्तु दशमी तिथि पड़ जाए तो विष योग।
7. शनिवार को रोहिणी नक्षत्र हो तो अमृत सिद्धि योग परन्तु एकादशी तिथि पड़ जाए तो विष योग।
ज्योतिष में वर्णित आनंद आदि 28 योगों में 21वाँ योग अमृत योग है।
मंगलवार में भद्रा तिथि द्वितीया, सप्तमी व द्वादशी (2,7,12) रहने पर,
गुरूवार में जया तिथि तृतीया, अष्टमी व त्रयोदशी (3,8,13) रहने पर,
रवि / सोमवार में पूर्णा तिथि पंचमी, दशमी और पूर्णिमा (5,10,15) रहने पर,
बुध या शनिवार में नंदा तिथि प्रतिपदा, षष्ठी व एकादशी (1,6,11) रहने पर ‘अमृतयोग’ बनते हैं । ये शुभ होते हैं।
निम्नलिखित स्थितियों में अमृत योग माना जाता है:
(1) रविवार उत्तराषाढ़ नक्षत्र,
(2) सोमवार शतभिषा नक्षत्र,
(3) भौमवार अश्विनी नक्षत्र,
(4) बुधवार मृगशिरा नक्षत्र,
(5) गुरुवार अश्लेषा नक्षत्र,
(6) शुक्रवार हस्त नक्षत्र तथा
(7) शनिवार अनुराधा नक्षत्र।
यह योग अपने नाम के अनुसार अमृतत्व फल देने वाला है अत: इस योग में यात्रा आदि शुभ कार्य श्रेष्ठ माने जाते हैं।
अमृत सिद्धि योग
रविवार व हस्त नक्षत्र,
सोमवार में मृगशिरा,
मंगल में अश्विनी,
बुधवार में अनुराधा,
गुरूवार में पुष्य,
शुक्रवार में रेवती तथा
शनिवार में रोहिणी नक्षत्र रहने पर ‘अमृत सिद्धि’ योग बनते हैं।
सामान्य व्यवहार में कदाचित् इन्हें वार व नक्षत्रों के सम्मिलित उच्चारण से भी व्यवहृत किया जाता है।
जैसे गुरूवार और पुष्य नक्षत्र के योग को ‘गुरू-पुष्य योग’ इसी प्रकार हस्तादित्य, भौमाश्विनी योग आदि भी कहा जाता है।
पुनश्च गुरूपुष्य में विवाह, भौमाश्विनी में गृहप्रवेश व शनिवार रोहिणी में यात्रा कदापि नहीं करनी चाहिये।
अत्यन्त आकस्मिकता व अपरिहार्यता की स्थिती में ही विवाहादि में इनका प्रयोग करें।
अमृत सिद्धि योग उत्तम योग हैं जिनमे किये जाने वाले कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। परन्तु इस दिन यदि दुष्ट तिथि पड़ जाए तो यह योग नष्ट होकर विष योग बन जाता है जिसे त्रितयत कहते हैं।
यह योग इस प्रकार बनते हैं –.
1. रविवार को हस्त नक्षत्र हो तो अमृत सिद्धि योग परन्तु पंचमी तिथि पड़ जाए तो विष योग।
2. सोमवार को मृगशिरा नक्षत्र हो तो अमृत सिद्धि योग परन्तु षष्टी तिथि पड़ जाए तो विष योग।
3. मंगलवार को अश्विनी नक्षत्र हो तो अमृत सिद्धि योग परन्तु सप्तमी तिथि पड़ जाए तो विष योग।
4. बुधवार को अनुराधा नक्षत्र हो तो अमृत सिद्धि योग परन्तु अष्टमी तिथि पड़ जाए तो विष योग।
5. गुरूवार को पुष्य नक्षत्र हो तो अमृत सिद्धि योग परन्तु नवमी तिथि पड़ जाए तो विष योग।
6. शुक्रवार को रेवती नक्षत्र हो तो अमृत सिद्धि योग परन्तु दशमी तिथि पड़ जाए तो विष योग।
7. शनिवार को रोहिणी नक्षत्र हो तो अमृत सिद्धि योग परन्तु एकादशी तिथि पड़ जाए तो विष योग।
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