Muhurta in Vedic Astrology


In Taittiriya Brāhmaas, muhūrta denotes a division of time: one-thirtieth of a day, or a period of forty-eight minutes, means 24 hours (60 Ghati) in a day are divided into 30 muhurtas.
So, 1 Day = 24 hours (60 Ghati) and
1Day is also = 30 muhurtas
This means 30 muhurtas = 24 hours (60 Ghati)
          1 muhurta = 48 minutes (2 Ghati)
24 hours of the day and night are further divided in 8 prahars 4 prahars during the daytime and 4 during night time. One Prahar on an average is three hours or seven and a half muhurtas. 4 Prahar from Sunrise are Purvanh (पूर्वान्ह), madhyanah (मध्यान्ह), aprahnah (अपरान्ह) and Sanykala (सायंकाल).



The 28 nakshatra map into the 28 muhurtas starting from sunrise and the remaining two muhurta before sunrise are attributed to the Brahma. These two muhurta taken together (96 minutes before sunrise) are loosely called as Brahma Muhurta. However, they are different in their energy and are better understood as Brahma and Surya (or Savitur to be more precise) being both Creators yet different. Brahma is the deity of Saturn and is associated with rebirth of the soul and this 29th Muhurta is excellent for meditation on the reasons for our creation, the purpose of this birth and realisation of the self and God whereas the 30th Muhurta is best for praying to the creator Savitur for impelling our intelligence in the right direction, burning the sins that led to rebirth and recovering from the curses and dridha karma of past births. This time is known as Brahma muhurat because this is the perfect time for gaining Brahma Gyan. Rishi Sushurut defined this time as Amrit Bela (the nectar time).

#Muhurta, #पूर्वान्ह, #मध्यान्ह #अपरान्ह #सायंकाल

अमृत योग - ज्योतिषशास्त्र का एक विशेष योग

अमृत योग - ज्योतिषशास्त्र का एक विशेष योग ।

ज्योतिष में वर्णित आनंद आदि 28 योगों में 21वाँ योग अमृत योग है।
मंगलवार में भद्रा तिथि द्वितीया, सप्तमी व द्वादशी (2,7,12) रहने पर,
गुरूवार में जया तिथि तृतीया, अष्टमी व त्रयोदशी  (3,8,13) रहने पर,
 रवि / सोमवार में  पूर्णा तिथि पंचमी, दशमी और पूर्णिमा  (5,10,15) रहने पर,
बुध या शनिवार में नंदा तिथि प्रतिपदा, षष्ठी व एकादशी (1,6,11) रहने पर ‘अमृतयोग’ बनते हैं । ये शुभ होते हैं।

निम्नलिखित स्थितियों में अमृत योग माना जाता है:


(1) रविवार उत्तराषाढ़ नक्षत्र,
(2) सोमवार शतभिषा नक्षत्र,
(3) भौमवार अश्विनी नक्षत्र,
(4) बुधवार मृगशिरा नक्षत्र,
(5) गुरुवार अश्लेषा नक्षत्र,
(6) शुक्रवार हस्त नक्षत्र तथा
(7) शनिवार अनुराधा नक्षत्र।

यह योग अपने नाम के अनुसार अमृतत्व फल देने वाला है अत: इस योग में यात्रा आदि शुभ कार्य श्रेष्ठ माने जाते हैं।

अमृत सिद्धि योग
रविवार व हस्त नक्षत्र,
सोमवार में मृगशिरा,
मंगल में अश्विनी,
बुधवार में अनुराधा,
गुरूवार में पुष्य,
शुक्रवार में रेवती तथा
शनिवार में रोहिणी नक्षत्र रहने पर ‘अमृत सिद्धि’ योग बनते हैं।

सामान्य व्यवहार में कदाचित् इन्हें वार व नक्षत्रों के सम्मिलित उच्चारण से भी व्यवहृत किया जाता है।

जैसे गुरूवार और पुष्य नक्षत्र के योग को ‘गुरू-पुष्य योग’ इसी प्रकार हस्तादित्य, भौमाश्विनी योग आदि भी कहा जाता है।

पुनश्च गुरूपुष्य में विवाह, भौमाश्विनी में गृहप्रवेश व शनिवार रोहिणी में यात्रा कदापि नहीं करनी चाहिये।

अत्यन्त आकस्मिकता व अपरिहार्यता की स्थिती में ही विवाहादि में इनका प्रयोग करें।

अमृत सिद्धि योग उत्तम योग हैं जिनमे किये जाने वाले कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। परन्तु इस दिन यदि दुष्ट तिथि पड़ जाए तो यह योग नष्ट होकर विष योग बन जाता है जिसे त्रितयत कहते हैं।
यह योग इस प्रकार बनते हैं –.

1. रविवार को हस्त नक्षत्र हो तो अमृत सिद्धि योग परन्तु पंचमी तिथि पड़ जाए तो विष योग।
2. सोमवार को मृगशिरा नक्षत्र हो तो अमृत सिद्धि योग परन्तु षष्टी तिथि पड़ जाए तो विष योग।
3. मंगलवार को अश्विनी नक्षत्र हो तो अमृत सिद्धि योग परन्तु सप्तमी तिथि पड़ जाए तो विष योग।
4. बुधवार को अनुराधा नक्षत्र हो तो अमृत सिद्धि योग परन्तु अष्टमी तिथि पड़ जाए तो विष योग।
5. गुरूवार को पुष्य नक्षत्र हो तो अमृत सिद्धि योग परन्तु नवमी तिथि पड़ जाए तो विष योग।
6. शुक्रवार को रेवती नक्षत्र हो तो अमृत सिद्धि योग परन्तु दशमी तिथि पड़ जाए तो विष योग।
7. शनिवार को रोहिणी नक्षत्र हो तो अमृत सिद्धि योग परन्तु एकादशी तिथि पड़ जाए तो विष योग।